Monday, 8 July 2019

[02/07, 10:30 AM] +91 94228 06617: जन्म कुंडली के 12 भावों के नाम स्वरूप और कार्य। शास्त्रों में 12 भावों के स्वरूप हैं और भावों के नाम के अनुसार ही इनका काम होता है। पहला भाव तन, दूसरा धन, तीसरा सहोदर, चतुर्थ मातृ, पंचम पुत्र, छठा अरि, सप्तम जाया, आठवाँ आयु, नवम धर्म, दशम कर्म, एकादश आय और द्वादश व्यय भाव कहलाता है़। प्रथम भाव : इसे लग्न कहते हैं। अन्य कुछ नाम ये भी हैं : हीरा, तनु, केन्द्र, कंटक, चतुष्टय, प्रथम। इस भाव से मुख्यत: जातक का शरीर, मुख, मस्तक, केश, आयु, योग्यता, तेज, आरोग्य आदि विषयों का पता चलता है। द्वितीय भाव : यह धन भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं, पणफर, द्वितीय। इससे कुटुंब-परिवार, दायीं आंख, वाणी, विद्या, बहुमूल्य सामग्री का संग्रह, सोना-चांदी, चल-सम्पत्ति, नम्रता, भोजन, वाकपटुता आदि विषयों का पता चलता है। तृतीय भाव : यह पराक्रम भाव के नाम से जाना जाता है। इसे भातृ भाव भी कहते हैं। अन्य नाम हैं आपोक्लिम, उपचय, तृतीय। इस भाव से भाई-बहन, दायां कान, लघु यात्राएं, साहस, सामर्थ्य अर्थात् पराक्रम, नौकर-चाकर, भाई बहनों से संबंध, पडौसी, लेखन-प्रकाशन आदि विषयों का पता चलता है। चतुर्थ भाव : यह सुख भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं- केन्द्र, कंटक, चतुष्टय। इस भाव से माता, जन्म समय की परिस्थिति, दत्तक पुत्र, हृदय, छाती, पति-पत्नी की विधि यानी कानूनी मामले, चल सम्पति, गृह-निर्माण, वाहन सुख आदि विषयों का पता चलता है। पंचम भाव : यह सुत अथवा संतान भाव भी कहलाता है। अन्य नाम है-त्रिकोण, पणफर, पंचम। इस भाव से संतान अर्थात् पुत्र। पुत्रियां, मानसिकता, मंत्र-ज्ञान, विवेक, स्मरण शक्ति, विद्या, प्रतिष्ठा आदि विषयों का पता चलता है। षष्ट भाव : इसे रिपुभाव कहते हैं। अन्य नाम हैं रोग भाव, आपोक्लिम, उपचय, त्रिक, षष्ट। इस भाव से मुख्यत: शत्रु, रोग, मामा, जय-पराजय, भूत, बंधन, विष प्रयोग, क्रूर कर्म आदि विषयों का पता चलता है। सप्तम भाव : यह पत्नी भाव अथवा जाया भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं-केन्द्र, कंटक, चतुष्टय, सप्तम। इस भाव से पति अथवा पत्नी, विवाह संबंध, विषय-वासना, आमोद-प्रमोद, व्यभिचार, आंतों, साझेदारी के व्यापार आदि विषयों का पता चलता है। अष्टम भाव : इसे मृत्यु भाव भी कहते हैं। अन्य नाम हैं-लय स्थान, पणफर, त्रिक, अष्टम। आठवें भाव से आयु, मृत्यु का कारण, दु:ख-संकट, मानसिक पीड़ा, आर्थिक क्षति, भाग्य हानि, गुप्तांग के रोगों, आकस्मिक धन लाभ आदि विषयों का पता चलता है। नवम भाव : इसे भाग्य भाव कहलाता हैं। अन्य नाम हैं त्रिकोण और नवम। भाग्य, धर्म पर आस्था, गुरू, पिता, पूर्व जन्म के पुण्य-पाप, शुद्धाचरण, यश, ऐश्वर्य, वैराग्य आदि विषयों का पता चलता है। दशम भाव : यह कर्म भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं- केन्द्र, कंटक, चतुष्टय-उपचय, राज्य, दशम। दशम भाव से कर्म, नौकरी, व्यापार-व्यवसाय, आजीविका, यश, सम्मान, राज-सम्मान, राजनीतिक विषय, पदाधिकार, पितृ धन, दीर्घ यात्राएं, सुख आदि विषयों का पता चलता है। एकादश भाव : यह भाव आय भाव भी कहलाता है। अन्य नाम हैं- पणफर, उपचय, लब्धि, एकादश। इस भाव से प्रत्येक प्रकार के लाभ, मित्र, पुत्र वधू, पूर्व संपन्न कर्मों से भाग्योदय, सिद्धि, आशा, माता की मृत्यु आदि विषयों का पता चलता है। द्वादश भाव : यह व्यय भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं- अंतिम, आपोक्लिम, एवं द्वादश। इस भाव से धन व्यय, बायीं आंख, शैया सुख, मानसिक क्लेश, दैवी आपत्तियां, दुर्घटना, मृत्यु के उपरान्त की स्थिति, पत्नी के रोग, माता का भाग्य, राजकीय संकट, राजकीय दंड, आत्म-हत्या, एवं मोक्ष आदि विषयों का पता चलता है। आइए इनके बारे में विस्तार से जानें: प्रथम भाव : इस भाव से व्यक्ति की शरीर यष्टि, वात-पित्त-कफ प्रकृति, त्वचा का रंग, यश-अपयश, पूर्वज, सुख-दुख, आत्मविश्वास, अहंकार, मानसिकता आदि को जाना जाता है। इससे हमें शारीरिक आकृति, स्वभाव, वर्ण चिन्ह, व्यक्तित्व, चरित्र, मुख, गुण व अवगुण, प्रारंभिक जीवन विचार, यश, सुख-दुख, नेतृत्व शक्ति, व्यक्तित्व, मुख का ऊपरी भाग, जीवन के संबंध में जानकारी मिलती है। विस्तृत रूप में इस भाव से जनस्वास्थ्य, मंत्रिमंडल की परिस्थितियों पर भी विचार जाना जा सकता है। द्वितीय भाव : इसे भाव से व्यक्ति की आर्थिक स्थिति, परिवार का सुख, घर की स्थिति, दाईं आँख, वाणी, जीभ, खाना-पीना, प्रारंभिक शिक्षा, संपत्ति आदि के बारे मे जाना जाता है। इससे हमें कुटुंब के लोगों के बारे में, वाणी, विचार, धन की बचत, सौभाग्य, लाभ-हानि, आभूषण, दृष्टि, दाहिनी आँख, स्मरण शक्ति, नाक, ठुड्डी, दाँत, स्त्री की मृत्यु, कला, सुख, गला, कान, मृत्यु का कारण जाना जाता है। इस भाव से विस्तृत रूप में कैद यानी राजदंड भी देखा जाता है। राष्ट्रीय विचार से राजस्व, जनसाधारण की आर्थिक दशा, आयात एवं वाणिज्य-व्यवसाय आदि के बारे में भी इसी भाव से जाना जा सकता है तृतीय भाव : इस भाव से जातक के बल, छोटे भाई-बहन, नौकर-चाकर, पराक्रम, धैर्य, कंठ-फेफड़े, श्रवण स्थान, कंधे-हाथ आदि का विचार किया जाता है। इससे हमें भाई, पराक्रम, साहस, मित्रों से संबंध, साझेदारी, संचार-माध्यम, स्वर, संगीत, लेखन कार्य, वक्षस्थल, फेफड़े, भुजाएँ, बंधु-बांधव आदि का ज्ञान मिलता है। राष्ट्रीय ज्योतिष के लिए इस भाव से रेल, वायुयान, पत्र-पत्रिकाएँ, पत्र व्यवहार, निकटतम देशों की हलचल आदि के बारे में जाना जाता है। चतुर्थ स्थान : इस भाव से मातृसुख, गृह सौख्य, वाहन सौख्य, बाग-बगीचा, जमीन-जायदाद, मित्र छाती पेट के रोग, मानसिक स्थिति आदि का विचार किया जाता है। इससे हमें माता, स्वयं का मकान, पारिवारिक स्थिति, भूमि, वाहन सुख, पैतृक संपत्ति, मातृभूमि, जनता से संबंधित कार्य, कुर्सी, कुआँ, दूध, तालाब, गुप्त कोष, उदर, छाती आदि का पता किया जाता है। राष्ट्रीय ज्योतिष हेतु शिक्षण संस्थाएं, कॉलेज, स्कूल, कृषि, जमीन, सर्वसाधारण की प्रसन्नता एवं जनता से संबंधित कार्य एवं स्थानीय राजनीति, जनता के बीच पहचान आदि देखा जाता है। पंचम भाव : इस भाव से संतति, बच्चों से मिलने वाला सुख, विद्या बुद्धि, उच्च शिक्षा, विनय-देशभक्ति, पाचन शक्ति, कला, रहस्य शास्त्रों की रुचि, अचानक धन-लाभ, प्रेम संबंधों में यशनौकरी परिवर्तन आदि का विचार किया जाता है। इससे हमें विद्या, विवेक, लेखन, मनोरंजन, संतान, मंत्र-तंत्र, प्रेम, सट्टा, लॉटरी, अकस्मात धन लाभ, पूर्वजन्म, गर्भाशय, मूत्राशय, पीठ, प्रशासकीय क्षमता, आय जानी जाती है। छठा भाव : इस भाव से जातक के शत्रुक, रोग, भय, तनाव, कलह, मुकदमे, मामा-मौसी का सुख, नौकर-चाकर, जननांगों के रोग आदि का विचार किया जाता है। इससे हमें शत्रु, रोग, ऋण, विघ्न-बाधा, भोजन, चाचा-चाची, अपयश, चोट, घाव, विश्वासघात, असफलता, पालतू जानवर, नौकर, वाद-विवाद, कोर्ट से संबंधित कार्य, आँत, पेट, सीमा विवाद, आक्रमण, जल-थल सैन्य के के बारे में पता चलता है। सातवाँ भाव : इस भाव से विवाह सौख्य, शैय्या सुख, जीवनसाथी का स्वभाव, व्यापार, पार्टनरशिप, दूर के प्रवास योग, कोर्ट कचहरी प्रकरण में यश-अपयश आदि का ज्ञान होता है। इससे हमें स्त्री से संबंधित, विवाह, सेक्स, पति-पत्नी, वाणिज्य, क्रय-विक्रय, व्यवहार, साझेदारी, मूत्राशय, सार्वजनिक, गुप्त रोग तथा राष्ट्रीय दृष्टिकोण से नैतिकता, विदेशों से संबंध, युद्ध का पता चलता हैं। आठवाँ भाव : इस भाव से आयु निर्धारण, दु:ख, आर्थिक स्थिति, मानसिक क्लेश, जननांगों के विकार, अचानक आने वाले संकटों का पता चलता है। इससे हमे मृत्यु, आयु, मृत्यु का कारण, स्त्री धन, गुप्त धन, उत्तराधिकारी, स्वयं द्वारा अर्जित मकान, जातक की स्थिति, वियोग, दुर्घटना, सजा, लांछन आदि का पता चलता है। नवम भाव: इसे भाव से आध्यात्मिक प्रगति, भाग्योदय, बुद्धिमत्ता, गुरु, परदेश गमन, ग्रंथपुस्तक लेखन, तीर्थ यात्रा, भाई की पत्नी, दूसरा विवाह आदि के बारे में बताया जाता है। इससे हमें धर्म, भाग्य, तीर्थयात्रा, संतान का भाग्य, साला-साली, आध्यात्मिक स्थिति, वैराग्य, आयात-निर्यात, यश, ख्याति, सार्वजनिक जीवन, भाग्योदय, पुनर्जन्म, मंदिर-धर्मशाला आदि का निर्माण कराना, योजना विकास कार्य, न्यायालय से संबंधित कार्य पता चलते है। दसवाँ भाव : इस भाव से पद-प्रतिष्ठा, बॉस, सामाजिक सम्मान, कार्य क्षमता, पितृ सुख, नौकरी व्यवसाय, शासन से लाभ, घुटनों का दर्द, सासू माँ आदि के बारे में पता चलता है। इससे हमें पिता, राज्य, व्यापार, नौकरी, प्रशासनिक स्तर, मान-सम्मान, सफलता, सार्वजनिक जीवन, घुटने, संसद, विदेश व्यापार, आयात-निर्यात, विद्रोह आदि के बारे में पता चलता है। एकादश भाव : इसे भाव से मित्र, बहू-जँवाई, भेंट-उपहार, लाभ, आय के तरीके, पिंडली के बारे में जाना जाता है। इससे हमें मित्र, समाज, आकांक्षाएँ, इच्छापूर्ति, आय, व्यवसाय में उन्नति, ज्येष्ठ भाई, रोग से मुक्ति, टखना, द्वितीय पत्नी, कान, वाणिज्य-व्यापार, परराष्ट्रों से लाभ, अंतरराष्ट्रीय संबंध आदि पता चलता है। द्वादश भाव: इस भाव से से कर्ज, नुकसान, परदेश गमन, संन्यास, अनैतिक आचरण, व्यसन, गुप्त शत्रु, शैय्या सुख, आत्महत्या, जेल यात्रा, मुकदमेबाजी का विचार किया जाता है। इससे हमें व्यय, हानि, दंड, गुप्त शत्रु, विदेश यात्रा, त्याग, असफलता, नेत्र पीड़ा, षड्यंत्र, कुटुंब में तनाव, दुर्भाग्य, जेल, अस्पताल में भर्ती होना, बदनामी, भोग-विलास, बायाँ कान, बाईं आँख, ऋण आदि के बारे में जाना जाता है। जन्म कुंडली के कारकत्व अर्थात 12 भावों से ज्ञात किये जा सकने वाले विषयों की जानकारी : 1. प्रथम लग्न, उदय, आद्य,तनु,जन्म, विलग्न, होय शरीर का वर्ण, आकृति, लक्षण, यश, गुण, स्थान, सुख दुख, प्रवास, तेज बल 2. द्वितीय स्व कुटुंब, वाणी, अर्थ, मुक्ति, नयन धन, नेत्र, मुख, विद्या, वचन, कुटुंब, भोजन, पैतॄक धन, 3. तॄतीय पराक्रम, सहोदर, सहज, वीर्य, धैर्य, भ्राता, पराक्रम, साहस, कंठ, स्वर, श्रवण, आभरण, वस्त्र, धैर्य, बल, मुल, फ़ल। 4. चतुर्थ सुख, पाताल, मातृ, विद्या, यान, यान, बंधु, मित्र, अंबु विद्या, माता, सुख, गौ, बंधु, मनोगुण, राज्य, यान, वाहन, भूमि, गॄह, हॄदय 5. पंचम बुद्धि, पितॄ, नंदन, पुत्र, देवराज, पंचक देवता, राजा, पुत्र, पिता, बुद्धि, पुण्य, यातरा, पुत्र प्राप्ति, पितृ विचार (सूर्य से) 6. षष्ठ रोग, अंग, शस्त्र, भय, रिपु, क्षत, रोग, श्त्रु, व्यसन, व्रण, घाव (मंगल से भी विचारणीय), 7. सप्तम जामित्र, द्यून, काम, गमन, कलत्र, संपत, अस्त। संपूर्ण यात्रा, स्त्री सुख, पुत्र विवाह (शुक्र से भी विचारणीय) 8. अष्टम आयु, रंध्र, रण, मॄत्यु, विनाश, आयु (शनि से भी विचारणीय) 9. नवम धर्म, गुरू, शुभ, तप, नव, भाग्य, अंक। भाग्य, प्रभाव, धर्म, गुरू, तप, शुभ (गुरू से भी विचारणीय) 10. दशम व्यापार, मध्य, मान, ज्ञान, राज, आस्पद, कर्म, आज्ञा, मान, व्यापार, भूषण, निद्रा, कॄषि, प्रवज्या, आगम, कर्म, जीवन, जिविका, वृति, यश, विज्ञान, विद्या, 11. एकादश भव, आय, लाभ संपूर्ण धन प्राप्ति, लोभ, लाभ, लालच, दासता 12. द्वादश व्यय, लंबा सफ़र, दुर्गति, कुत्ता, मछली, मोक्ष, भोग, स्वप्न, निद्रा, (शनि राहु से भी विचारणीय) जन्म कुंडली में दशम घर या दशमेश से व्यवसाय का निर्धारण होता है। दशमेश की विभिन्न भावो में स्थिति के अनुसार कार्य। 1. दशमेश यदि पहले भाव में हो तो व्यक्ति सरकारी सेवा करता है या उसका निज का स्वतंत्र व्यवसाय होता है। 2. दूसरे भाव में हो तो बैंकिंग, अध्यापन, वकालत, पारिवारिक काम, होटल व रेस्तरां, आभूषण एवम नेत्रों का चिकित्सक या ऐनकों से सम्बंधित व्यवसाय होगा। 3. तीसरे भाव में हो तो रेलवे, परिवहन, डाक एवम तार, लेखन, पत्रकारिता, मुद्रण, साहसिक कार्य, नौकरी, गायन-वादन से सम्बंधित व्यवसाय होगा। 4. चौथे भाव में हो तो खेती -बाड़ी, नेवी, खनन, जमीन-जायदाद, वाहन उद्योग, जनसेवा, राजनीति, लोक निर्माण विभाग, जल परियोजना, आवास निर्माण, आर्किटेक्ट, सहकारी उद्यम इत्यादि से सम्बंधित व्यवसाय हो सकता है। 5. पांचवें भाव में हो तो शिक्षण, शेयर मार्केट, आढत-दलाली, लाटरी, प्रबंधन, कला-कौशल, मंत्री पद, लेखन,फिल्म निर्माण इत्यादि से सम्बंधित व्यवसाय हो सकता है। 6. छठे भाव में हो तो जन स्वास्थ्य, नर्सिंग होम, अस्त्र -शस्त्र, सेना, जेल, चिकित्सा, चोरी, आपराधिक कार्य, मुकद्दमेबाजी तथा पशुओं इत्यादि से सम्बंधित व्यवसाय हो सकता है। 7. सातवें भाव में हो तो विदेश सेवा, आयात-निर्यात, सहकारी उद्यम, व्यापार, यात्राएं, रिश्ते कराने का काम इत्यादि से सम्बंधित व्यवसाय हो सकता है। 8. आठवें भाव में हो तो बीमा, जन्म -मृत्यु विभाग,वसीयत, मृतक का अंतिम संस्कार कराने का काम, आपराधिक कार्य, फाईनैंस इत्यादि से सम्बंधित व्यवसाय हो सकता है। 9. नवें भाव में हो तो पुरोहिताई, अध्यापन, धार्मिक संस्थाएं, न्यायालय, धार्मिक साहित्य, प्रकाशन शोध कार्य इत्यादि से सम्बंधित व्यवसाय हो सकता है। 10. दसवें भाव में हो तो राजकीय एवम प्रशासकीय सेवा, उड्डयन क्षेत्र, राजनीति, मौसम विभाग, अन्तरिक्ष, पैतृक कार्य इत्यादि से सम्बंधित व्यवसाय हो सकता है। 11. ग्यारहवें भाव में हो तो लोक या राज्य सभा पद, आयकर, बिक्री कर, सभी प्रकार के राजस्व, वाहन, बड़े उद्योग इत्यादि से सम्बंधित व्यवसाय हो सकता है। 12. बारहवें भाव में हो तो कारागार, विदेश प्रवास,राजदंड इत्यादि से सम्बंधित व्यवसाय हो सकता है। [04/07, 10:07 AM] +91 94228 06617: 1. अगर चंद्रमा नीच का है, तो आप पूर्व जन्म मे किसी माँ को तकलीफ दे कर आएं है। व किसी का मन मारकर आएं है। 2. अगर ☀ नीच का है तो पिता को कष्ट देकर आए है या अपनी आत्मा को मार कर (आतम हत्या) कर के आए है। 3. अगर गुरू नीच का है तो आप गुरु तुल्य जन व पति का व बच्चों का दिल तोड़ कर आएं है। 4. अगर बुध नीच का है तो व्यापार मे धोखा देकर आए है। 5. शुक्र नीच का है तो आप पैसों का दुरुपयोग करके आए है या किसी औरत या अपनी पत्नी को छल कर आए है। 6. अगर शनि नीच का है तो आप न्याय की जगह अन्याय कर के आए है। [04/07, 3:44 PM] +91 94228 06617: 💥💥💥💥💥💥💥💥 🌷 अनुभवसिद्ध योग 🌷 🔹वृषभेचा किंवा मकरेचा रवी व्यक्तीला आळशी करतो . 🔹तुळेचा रवी कुठेही असला तरी मुलांकडून निखळ सुख मिळण्यात बाधा येते . तो रवी मंगळ किंवा शनीने बिघडला तर मणक्यांचा त्रास होतो . 🔹वृषभेचा रवी दशमात राहूचे प्रतियोगात आणि केतूचे युतीत असेल तर धंद्यातील प्रतिष्ठा जाते ,नोकरीमध्ये मानहानीचे प्रसंग येतात . 🔹मछळ कुंडलीत व नवमांश कुंडलीत दोन्ही ठिकाणी रवी नीच राशीत असेल तर पित्याचे सौख्यात कमतरता असते . वडिलांचे संसारात लक्ष नसणे , व्यसन असणे असे प्रकार घडतात 🔹वृषभ /तुळ/मकर/ कुंभ या राशीत रवी असेल तर रोगप्रतिकारक शक्ती कमी असते . ( क्रमश:) 🔸संकलन -र .ल .देशपांडे जळगाव. 💥💥💥💥💥💥💥💥 [04/07, 3:44 PM] +91 94228 06617: 💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥 🌷अनुभवसिद्ध योग 🌷 🔹बिघडलेले गुरु - शुक्र मधुमेह देतात . 🔹कर्केचे मंगळ - शनी युतीत असतील तर ह्रदय विकार किंवा मुत्राशय ,मुत्रपिंडाचे आजार देतात.1-4 -6 -8 -12 यास्धानातील ही युती निश्चित त्रासदायक असते . 🔹द्वितीयेश , व्ययेश 6 / 8 या अशुभ भावातून गेले तर दृष्टीदोष निर्माण होतात किंवा आर्थिक संकटे येतात . 🔹लग्नेश 6 - 8 - 12 मध्ये असेल तर श्वसन ,फुप्फुसे यासंबंधी रोग होण्याची शक्यता असते . 🔹दशमेश अशुभ राशीत किंवा 6 -8 -12 या अशुभ सथानात असल्यास गुडघ्याचा त्रास देतो. 🔹लग्नी मकरेचा शनी-मंगळ युतीत असतील तर प्रकृती ठणठणीत असते . 🔹मीन राशीचा अंमल पावलांवर असतो. मीनेचा शनी षष्ठात त्वचेचे रोग देतो . (क्रमश:) दि 30 / 6 / 2019 . 🔸 संकलन - र .ल .देशपांडे .जळगाव . 💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥 [04/07, 3:44 PM] +91 94228 06617: 💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥 🌷अनुभवसिद्ध योग 🌷 🔹पंचमस्थान आणि सप्तमस्थान यांचे स्वामी परिवर्तन योगात असतील तर प्रेमविवाह होतो . यांची युती कुठल्याही स्थानात असली तरी प्रेमविवाह होतो . 🔹लग्नेश दुर्बल म्हणजे 6 /8 /12 स्थानी गेला असेल किंवा शत्रू राशीत गेला असेल तर शुभ ग्रहांच्या प्रभावात फलादेशात न्यूनत्व येते आणि अशुभ ग्रह अधिक दाहक होतात . 🔹 4 / 8 / 12 या स्धनांचे स्वामी लग्नी असतील तर आरोग्य चांगले राहात नाही . 🔹शस्त्रक्रियेसाठी अष्टमस्थान पाहतात . अष्टमात - मंगळ , शनी , राहू , हर्षल ,नेपच्यून असे पापग्रह असतील तर हर्निया , हायुंडोसिल ,अपेंडिसायटिस, डोळे अशाप्रकारचे आँपरेशन होते . 🔹बाराव्या स्थानात पती- पत्नि दोघांचे अशुभ ग्रह असतील किंवा दोघांचेही बाराव्या स्थनातील ग्रह शत्रू राशीत असतील तर समगमात न्यूनता अडचणी येतात . (क्रमश:) दि 29 / 6 / 2019 🔸संकलन - र .ल .देशपांडे . जळगाव . 💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥 [04/07, 3:44 PM] +91 94228 06617: 💥💥💥💥💥💥💥💥💥 🌷अनुभवसिद्ध योग 🌷 🔹सप्तमेश नीच राशीत असल्यास वैवाहिक जीवन समस्यामय असते . 🔹ज्यापत्रिकेत केंद्रयोग , षडाष्टक योग , प्रतियोग , अशुभ युत्या अगदी कमी असतात अशा व्यक्तीचे ग्रह अगदी सामान्य असले तरी जीवन सुखी व यशस्वी होते . 🔹द्वितीय स्थानातील कोणताही ग्रह इतर 3 /4 ग्रहांनी दूषित असेल तर थाइराइड ,टाँन्सिल्स सारखे गळ्याचे विचार होतात /धननाश करतो . 🔹प्रथम व सप्तम स्धानातील ग्रह जर प्रतियोगात असतील तर पती-पत्नी मध्ये प्रेमभावनेचा अभाव असतो . 🔹दोन नीच राशीतील ग्रह किंवा दोन शत्रुराशीतील ग्रह यांची महदशा अंतर्दशा असताना जीवनावर कायमस्वरूपी परिणाम होईल अशा अशुभ घटना घडतात . 🔹सप्तमेश भाग्यात आणि भाग्येश सप्तमात असलेली व्यक्ती भागिदारीला चांगली असते. 【 क्मश: 】 दि .28 / 6 / 2019. 🔸संकलन - र .ल .देशपांडे. जळगाव . 💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥 [04/07, 3:44 PM] +91 94228 06617: 💥💥💥💥💥💥💥💥💥 🌷अनुभवसिद्ध योग 🌷 🔹पंचमात राहू-केतू गुरुच्या युतीत असल्यास यकृत विकार , गर्भाशय व्याधी देतो . 🔹पंचमात वृश्चिकेचा नेपच्यून व लाभात वृषभ मंगळ असल्यास संशयास्पद वर्तणूक असते . 🔹कन्येचा नेपच्यून उच्च प्रतीची प्रतिभा देतो .सम्यक समीक्षण करण्याची ताकद देतो .लेखक होण्याचे योग असतात . 🔹चतुर्थात वृश्चिकेचे चंद्र नेपच्यून मातेचे मानसिक संतुलन बिघडवितात . 🔹पंचमात मेशेचे बुध-नेपच्यून आणि पंचमेश मंगळ मिथुनेत किंवा कन्येत असल्यास संततीचा अभाव असतो . 🔹1- 5-7-9 ही स्थाने अशुभ कर्तरीत आली तर जीवन समस्याप्रधान असते . 🔹पत्रिकेत कोणतेही चार ग्रह नीच राशीत असले तर जीवन अपयशी असते . (क्रमश:)दि 27 / 6 /2019 . 🔸संकलन -र .ल .देशपांडे . जळगाव. 💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥 [04/07, 3:44 PM] +91 94228 06617: 💥💥💥💥💥💥💥💥💥 🌷अनुभवसिद्ध योग 🙏🏼 🔹वृश्चिकेचा राहू चतुर्थात घरापासून दूर राहण्याचा प्रसंग आणतो .त्याबरोबर नेपच्यून असेल तर या योगाला अधिक बळकटी येते . 🔹सप्तमात किंवा लग्नी कर्कराशीत राहू, शुक्र असेल तर आंतरजातीय विवाह होतो. कारण हे दोन्ही ग्रह चंद्राच्या राशीत आहेत व ते चंद्राचे शत्रू आहेत . 🔹मीनेचा राहू -शनी कोणत्याही स्थानात युतीत असतील तर वैवाहिक जीवन कष्टप्रत असते . 🔹सिंहेचा केतू कोठेही असला तरी त्या स्थानासंबंधी समस्या निर्माण करतो . 🔹वृश्चिकेची केतु-शुक्र युती गरमी -परमा रोग देतात. पंचमातील युती मासिक पाळी - गर्भाशय दोष उत्पन्न करते . 🔹अष्टमातील राहू / केतू शारीरिक व्याधी देतात . सर्दी ,कफ् , खोकला , असा त्रास असतो . ( क्रमश: )दि. 25 / 6 / 2019 🔸संकलन - र .ल .देशपांडे ,जळगाव . 💥💥💥💥💥💥💥💥💥 [04/07, 3:44 PM] +91 94228 06617: 💥💥💥💥💥💥💥💥💥 🌷अनुभवसिद्ध योग 🌷 🔹मीनेचा शनी- राहू लग्नी असतील तर शारीरिक व्यंग असते , चेहरा जरा ओबडधोबड असतो . 🔹द्वितीयातील सिंहेचा शनी असाध्य रोग देण्याची शक्यता असते कारण तो सप्तम व अष्टम स्थानाचा स्वामी असतो . 🔹सप्तमात ३-५-६ या राशीचा शनी आणि रवी - मंगळाचा केंद्रयोग होत असेल तर अशा स्त्रीला विवाहाची इच्छा नसते . 🔹शनीमुळे रवी -चंद्र बिघडले तर आरोग्याच्या तक्रारी असतात . 🔹मेषेचा राहू कोठेही असला तरी वैवाहिक जीवनात दु:खाची छाया आणतो . अनेक अविवाहितांच्या कुंडलीत मेषेचा राहू आढळतो . 🔹वृश्चिकेचा राहू षष्ठात शनी किंवा हर्षलाशीयुत असेल तर अशा लोकांकडे मोठ्या चोर्या होतात . अशीच युती व्ययात असेल तरी हाच अनुभव येतो ( कालखंड - राहूच्या महादशेत शनीची अंतर्दशा किंवा शनीच्या महहादशेत राहूची अंतर्दशा .) ( क्रमश: ) दि 24 / 6 / 2019 . 🔸संकलन - र .ल .देशपांडे .🔸 💥💥💥💥💥💥💥💥💥 [04/07, 3:44 PM] +91 94228 06617: 💥💥💥💥💥💥💥💥💥 🌷अनुभवसिद्ध योग 🌷 🔹शुक्र-शनीचे अशुभ योग वैवाहिक जीवनात समस्या आणतात . 🔹वृश्चिकेचा शुक्र प्रबळ कामवासना देतो .लहान वयातच लग्नाचे विचार येतात . 🔹दुसर्या स्थानातील कन्येचा शुक्र वडिलांची स्थिती सामान्य देतो . 🔹चतुर्थातील कन्येचा शुक्र श्वसन , छाती ,फुप्फुसे यांचा त्रास देतो . 🔹मेष ,सिंह धनु या अग्नी राशीतील शनी जीवनात एकदातरी मोठी शस्त्रक्रिया घडवितो . रवी, राहू ,मंगळ यांच्या महादशेत शनीची अंतर्दशा आली तर त्या काळात operation होते . 🔹मेष ,कर्क , सिंह , वृश्चिक , धनु या राशींच्या प्रतियोगात जर शुभ ग्रह असेल तर विवाहाला उशीर होतो .वैवाहिक जीवन त्रासदायक होते . ( क्रमशः ) दि -23 / 6 / 2019 🔸संकलन - र .ल .देशपांडे , जळगाव. 💥💥💥💥💥💥💥💥💥 [04/07, 3:44 PM] +91 94228 06617: 💥💥💥💥💥💥💥💥💥 🌷अनुभवसिद्ध योग 🌷 🔹पंचमातील गुरु-शनी युती पोटाचे विकार देतात.यकृत , पित्ताषयाचे विकार संभवतात .अतीदारुसेवनाने पोटाचा कर्करोग संभवतो . 🔹कन्येचा / मिथुनेचा गुरु असणार्या 70% लोकात विषमज्वर ,मुळव्याध आढळला . 🔹कर्क-सिंह -कन्या राशीतील शुक्र वीर्य कमकुवत करतो . परंतु चंद्र शुभ असल्यास दोष टळतो . 🔹कर्क/धनु राशीतील अष्टमातील शुक्र सर्दी - खोकला - कफविकर दर्शवितो. 🔹व्ययातील सिंह राशीतील शुक्र आर्थिक समस्या देतो कारण तो द्वितीयेश व भाग्येश असतो . 🔹सिंहेचा व कन्येचा शुक्र अरसिकता देतो .संसारात मन रमत नाही . 🔹वैवाहिक जीवनासाठी पुरुषांचा शुक्र आणि स्त्रियांचा मंगळ शुभ असायला हवा . तरच सुख लाभते . ( क्रमश: ) 22 / 6/ 2019 🔸संकलन - र .ल .देशपांडे जळगाव . 💥💥💥💥💥💥💥💥💥 [04/07, 3:44 PM] +91 94228 06617: 💥💥💥💥💥💥💥💥💥 🌷अनुभवसिध्द योग 🌷 🔹मेषेचा किंवा वृश्चिकेचा बुध कोठेही असला तरी अशा व्यक्तींना व्यवसायात भागिदार म्हणून घेऊ नये . 🔹मिधुन / कन्येचा गुरु पोटाचे विकार / कावीळ देतो 🔹मेश -कर्क - सिंह - धनू - मीन या राशीतील गुरु उत्तम बुध्दिमत्ता देतो .शैक्षणिक क्षेत्रात संधी मिळते . 🔹व्ययात तुळेचा गुरु आणि पंचमस्थान अशुभ कर्तरीत असल्यास लघवीचे विकार संभवतात. 🔹सप्तमातील गुरु विवाहसुखात कमतरता आणतो . 🔹स्वगृहीचा , मित्रक्षेत्री असलेला ,उच्चीचा गुरु शैक्षणिक यश देतो परंतु पापग्रहाच्या युतीत संतती समस्या देतो . 🔹गुरु- शनी युती कमरेत उसण , मणक्यांचा त्रास , सायटिका , सांधेदुखी संधीवात अशाप्रकारचे विकार देते ( क्रमश :) 21/6/2019 🔹संकलन - र .ल .देशपांडे ,जळगाव . 💥💥💥💥💥💥💥💥💥 [04/07, 3:44 PM] +91 94228 06617: 💥💥💥💥💥💥💥💥 🌷अनुभवसिद्ध योग 🌷 🔹अष्टमातील मिथुनेचा मंगळ अनारोग्य देतो कारण तो लग्नेश व षष्ठेश असतो . 🔹पंचमात बुधाच्या मिथुन/कन्या राशीतील मंगळ किंवा कर्क या नीच राशीतील मंगळ संततीत व शिक्षणात न्यूनता देतो . 🔹मेश / वृश्चिक राशीचा मंगळ असलेल्या व्यक्ती अभिमानी व गर्विष्ठ असतात..ऐहिक सुखाकडे कल असतो . 🔹भाग्यातील मिथुनेचा मंगळ एकदातरी प्रेमभंग करतो कारण तो सप्तमेश असतो. 🔹पंचमातील शनी- मंगळ किंवा रवी-मंगळ युतीने पोटात वात धरतो . 🔹2/12 स्थानतील शनी- मंगळ दृष्टीदोष निर्माण करतात. 🔹अष्टमातील मंगळ कोणत्याही अवयवाची समस्या देतो . 🔹अष्टमातील वृश्चिकेचा बुध BP किंवा मणक्यांचे विकार किंवा डोकेदुखी देतो कारण तो षष्ठेश असतो 🔹सप्तमातील मेशेचा किंवा वृश्चिकेचा बुध पती / पत्नी लहरी वा हलक्या मनोवृत्तीची देतो. ( क्रमश:) 20/ 6 /2019 🔹संकलन - र . ल . देशपांडे ,जळगाव. 💥💥💥💥💥💥💥💥💥 . [04/07, 3:44 PM] +91 94228 06617: 💥💥💥💥💥💥💥💥 🌷अनुभवसिध्द योग 🌷 🔹चंद्रापासून गुरु 6- / 8 / 12 या स्थानात असता आर्थिक समस्या येतात . 🔹चंद्र शनीच्या केंद्रयोगात असेल तर अनेकदा मुलींना विवाहाची इच्छा नसते . 🔹रवी - चंद्र हे शुभयोगात असतील तर प्रकृतीच्या तक्रारी नसतात . 🔹मकरेतील रवी-चंद्र युती कुठेही असो ती व्यक्तीला ध्येयशून्य ,तेजोहीन कमनशिबी बनविते . 🔹बिघडलेला चंद्र अस्थमा / क्षय / प्लुरसी / फुफ्फुसात पाणी असे रोग देतो . 🔹अष्टमात मंगळ कर्केचा असल्यास संतती संबंधी समस्या येते . शिक्षणात मनाजोगे यश मिळत नाही . 🔹2/6/8/12 यास्थानात रवी- चंद्र युती डोळ्यांच्या समस्या निर्माण करते ,असाच परिणाम चंद्र -शुक्र युतीचाही होतो . ( क्रमश: ) 19/6 /2019 🔸संकलन -र .ल .देशपांडे .जळगाव 💥💥💥💥💥💥💥💥💥 [04/07, 3:44 PM] +91 94228 06617: 💥💥💥💥💥💥💥💥 🌷अनुभवसिद्ध योग 🌷 🔹वृषभेचा रवी षष्ठात असेल तर मुलामुलींचे चुकीचे वर्तन होऊन प्रतिष्ठेला धक्का पोचतो . नोकरीत सुध्दा चुकीचे व्यवहार झाल्याने त्रास होतो . 🔹मेषेचा वा सिंहेचा रवी असणाऱ्या व्यक्तींना अहंगंड असतो . 🔹मेष ,सिंह किंवा मीनेचा रवी अधिकार पद देतो . 🔹चंद्र हा हर्षल - नेपच्यूनच्या प्रतियोगात असेल तर व्यक्तिमत्त्व निस्तेज , सत्वहीन व निराशावादी असते . मानसिक संतुलन बिघडण्याची शक्यता असते . ( क्रमश: ) 18/6/19 🔸संकलन - र .ल .देशपांडे 💥💥💥💥💥💥💥💥 [04/07, 3:44 PM] +91 94228 06617: 💥💥💥💥💥💥💥💥 🌷 अनुभवसिद्ध योग 🌷 🔹वृषभेचा किंवा मकरेचा रवी व्यक्तीला आळशी करतो . 🔹तुळेचा रवी कुठेही असला तरी मुलांकडून निखळ सुख मिळण्यात बाधा येते . तो रवी मंगळ किंवा शनीने बिघडला तर मणक्यांचा त्रास होतो . 🔹वृषभेचा रवी दशमात राहूचे प्रतियोगात आणि केतूचे युतीत असेल तर धंद्यातील प्रतिष्ठा जाते ,नोकरीमध्ये मानहानीचे प्रसंग येतात . 🔹मछळ कुंडलीत व नवमांश कुंडलीत दोन्ही ठिकाणी रवी नीच राशीत असेल तर पित्याचे सौख्यात कमतरता असते . वडिलांचे संसारात लक्ष नसणे , व्यसन असणे असे प्रकार घडतात 🔹वृषभ /तुळ/मकर/ कुंभ या राशीत रवी असेल तर रोगप्रतिकारक शक्ती कमी असते . ( क्रमश:) 🔸संकलन -र .ल .देशपांडे जळगाव. 💥💥💥💥💥💥💥💥 [06/07, 8:20 AM] +91 94228 06617: ग्रहांची दृष्टी 1. प्रत्येक ग्रह ज्या स्थानावर असतो त्याच्या सातव्या स्थानी त्यांची पूर्ण दृष्टी असते. 2. मंगळ जिथे राहतो तिथून चवथ्या, सातव्या व आठव्या स्थानावर त्याची दृष्टी असते. 3. गुरुच्या स्थानापासून पाचव्या, सातव्या व नवव्या स्थानावर त्याची नजर असते. 4. शनीच्या स्थानापासून तिसर्‍या, सातव्या व दहाव्या स्थानावर तो पूर्ण लक्ष ठेवतो. 5. कृष्णमुर्ती पद्धतीनुसार राहू..केतू..हर्षल व नेपच्युन या ग्रहांना दृष्टी नसते..ते ज्या स्थानात असतात..ज्या राशीत असतात वज्या ग्रहाच्या नक्षत्रात असतात त्यानुसार जातकास फले देतात. प्रत्येक ग्रह ज्या जागी, ज्या राशीत बसतो त्यानुसार त्या ग्रहाचे शुभाशुभ फळ मिळते. ग्रहांची एक चरण, द्विचरण दृष्टी असते त्यासाठी बारीक निरीक्षण व अभ्यासाची गरज आहे.

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