[225/1/2017, 6:10 AM] +91 94228 06617: *ज्योतिष सूत्र*
1. जन्मकुंडली में यदि ग्यारहवें घर में शनि हो, तो मुख्य द्वार की चौखट बनाने से पहले उसकेनीचे चन्दन दबा दें, सुख-समृद्धि से घर सुशोभित रहेगा।
2. भवन निर्माण से पहले भूखंड पर पांच ब्राह्मणों को भोजन करना बहुत शुभ होता है। इससे घरमें धन, ऐश्वर्य व सुखों का वास होता है। बच्चे भी संस्कारी व आज्ञाकारी होते हैं।
3. यदि जीवन समस्याओं व दुखों से भरा हो, तो सौ ग्राम साबुत चावल किसी तालाब में डाल दें।
4. यदि घर में मां को लगातार कोई कष्ट सता रहा हो, तो 121 पेड़े लेकर बच्चों को बांट दें कष्ट दूरहो जाएगा।
5. यदि जमीन जायदाद लाख कोशिशों के बावजूद अधिक दामों न बिक पा रहा हो, तो कभी-कभीचाय की पत्ती जमादार को दें। चांदी का चैकोर टुकड़ा सदैव अपने पास रखें और चांदी के गिलास मेंही पानी पीएं। हमेशा सफेद टोपी पहनें। संपत्ति अधिक दामों में बिक जाएगी।
6. राहु ग्रह की अशुभता दूर करनी हो, तो भगवती काली की उपासना करें । राहु अशुभ हो, तोअचानक शारीरिक कष्ट होता है। चांदी की चेन गलें में पहनें राहत मिलेगी। कुत्तों को रोटी अवश्यखिलाएं, गरीबों को सूज़ी का हलवा अपने हाथ से बांटें, कष्ट दूर होगा।
7. अक्षय तृतीया पर धनदा यंत्र पीले रेशमी कपड़े पर स्थापित करें, कनकधारा स्तोत्र का पाठ धूप,दीप, नैवेद्य के साथ करें और प्रतिदिन यंत्र का दर्शन करें। घर में सुख-समृद्धि का वास होगा,दुर्भाग्य सौभाग्य में बदल जाएगा । हर पाठक को इस शुभ अवसर का लाभ अवश्य उठाना चाहिए।
8. यदि व्यवसाय या रोजगार में विघ्न बहुत आ रहे हों, तो दस अंधों को भोजन कराएं और गुलाबजामुन खिलाएं। अपने माता-पिता की सेवा करें, विघ्न अपने आप दूर हो जाएंगे ।
9. पढाई करते वक्त विशेष कर नींद आए और पढ़ाई में मन न लगे, रूकावटें आए तो इसके लिएपूर्व की तरफ सिरहाना करके सोएं। रोज रामायण के सुन्दरकांड के कुछ अंशों का पाठ करनाचाहिए। इसके साथ-साथ सवा 5 रत्ती का एक खूबसूरत मोती और सवा 6 रत्ती का मूंगा चांदी कीअंगूठी में जड़वा कर क्रमशः छोटी अंगुली और अनामिका में धारण करें । पढ़ते वक्त नींद नहींआएगी तथा इस उपाय से विद्यार्थी परीक्षा में अव्वल आते हैं और समस्त रूकावटें दूर हो जाती हैं।
10. मानसिक अशांति की समस्या किसी पूर्व पाप का परिणाम होता है। इसे दूर करने के लिए यहउपाय बहुत लाभकारी है। प्रतिदिन हनुमान जी की पूजा और उनका स्मरण करें। हनुमान चालीसाका अवश्य पाठ करें। शुक्ल पक्ष के प्रथम मंगलवार से उपाय शुरू करें। सोते वक्त एक छोटा साचाकू सिरहाने के नीचे रखें। जिस कमरे में सोते हों, कपूर का लैंप जलाएं। समस्या का सामधानहो जाता है। पूर्व जन्म के पाप नष्ट होने लगते हैं और स्थितियां अनुकूल होने लगती हैं तथामानसिक अशांति दूर होती है।
11. कर्ज से मुक्ति के लिए: कर्ज से पीड़ित व्यक्ति को चाहिए कि दोनों मुटठी में काली राई लें। चैराहेपर पूर्व दिशा की ओर मुंह रखें तथा दाहिने हाथ की राई को बाईं ओर और बाएं हाथ की राई कोदाहिनी दिशा में फेंक दें। एक साथ राई को फेंकना चाहिए। राई फेंकने के पश्चात चैराहे पर सरसोंका तेल डाल कर दोमुखी दीपक जला देना चाहिए। दिया मिट्टी का रखना चाहिए। यह प्रयोगशुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार को संध्या के समय करें। श्रद्धा द्वारा किया गया यह उपाय अवश्यकर्ज से मुक्ति दिलवाता है। एक बार सफलता न प्राप्त हो, तो दोबारा फिर कर लेना चाहिए। जिसचैराहे पर टोटका किया जा चुका हो उस दिन उस चैराहे पर टोटका नहीं करना चाहिए। इस बात काविशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। यदि अमावस्या हो और शनिवार हो तो यह विशेष फलदायी होताहै । तब यह टोटका करना जादुई चमत्कार से कम नहीं है।
*संकलन जोतिषरत्न पं देवव्रत बूट*
*ग्रहदृष्टी सूर्य सिध्दांतीय पंचांग नागपूर*
[26/12/2017, 8:52 PM] +91 94228 06617: ----------------------------------------
*जन्मकुंडली म्हणजे काय?*
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खूप लोकांना हा प्रश्न पडतो कि जन्मकुंडली नेमके म्हणजे काय? तर चला थोडक्यात जाणून घेऊया
देवाचे काम काय आहे की आपल्याला आईच्या गर्भात गर्भधारणा झाल्यावर पहिल्या दिवसा पासुन ते नवव्या महिन्यात पर्यंत गर्भात आपले रक्षण करणे आणि जसा आपला आईच्या गर्भातून आपला या पृथ्वीवर म्हणजे एका ग्रह वर जन्म होतो तसा या नऊ ग्रहाचा आपल्या जीवनावर प्रभाव सुरू होतो.
जातकाचा जन्म पृथ्वीवर झाल्यावर वरते या ग्रहाची स्थिति काय आहे ते आपल्या जन्मदिनांक, जन्मवेळी तुमच्या जन्मस्थळावरून पंचागच्या आधारे ग्रह- नक्षत्र-राशींची स्थिती दाखवणारा सांकेतिक पद्धतीचा आराखडा म्हणजे तुमची जन्मकुंडली व कुंडलीतील ग्रहांची स्थिती नुसार ग्रह हे जीवनावर प्रभाव करतात.
कुंडलीत जे आकडे असतात त्यांना जन्म लग्न असे म्हणतात ते राशींचे अनुक्रमांक दाखवणारे आकडे असतात. स्थानांचे म्हणजे घरांचे अनुक्रमांक तिच्यात लिहीत नाहीत. आपल्याकडे ती चौकटीत मांडलेली असते. कुंडली ही खगोलशास्त्रावर आधारलेली असते पण तिच्यावरुन भाकीत सांगणे हा फलज्योतिषाचा भाग आहे
पण प्रथम आपल्याला ज्योतिषाची थोडी माहिती असली पाहिजे. आपण जेव्हा ज्योतिषास जन्म वेळ, तारीख आणि जन्मठीकाण सांगतो .तेव्हा ज्योतिषी एक कुंडली तयार करतो .ही कुंडली म्हणजे जन्माच्या वेळी आकाशात जी ग्रहस्थिती होती त्याचा नकाशा . म्हणून
आज ह्या लेखात कुंडलीमध्ये जी १२ स्थाने असतात त्यांची माहिती सांगेन.
*१) पहिले स्थान -लग्नस्थान :-*
या स्थाना वरून माणसाचे आयुष्य, रंग, उंची, रूप, स्वभाव, डोके, मेंदू या गोष्टी पहिल्या जातात.
*२) दुसरे स्थान – धनस्थान :-*
या स्थाना वरून माणसाला मिळणारा पैसा, त्याचे डोळे, बोलणे, वाणी (मधुरता, कुटुंबातील व्यक्ती, त्याशिवाय काही मारक बाधक गोष्टी पहिल्या जातात.
*३) तिसरे स्थान -पराक्रम स्थान :-*
या वरून माणसाने स्वतः मेहनतीने मिळवलेले यश, छोटे प्रवास, लहान भावंडे, हात, श्वसनसंस्था पहिली जातात.
*४) चौथे स्थान -सुख स्थान :-*
या स्थानावरून प्राथमिक शिक्षण (10/12 पर्यंतचे) वाहनसुख, गाडी, बंगला, मालमत्ता, आई, माणसाचे मन, जमीन या गोष्टी पाहतात.
*५) पाचवे स्थान -संतती स्थान/विद्या/महालक्ष्मी स्थान :-*
नावाप्रमाणेच यावरून मुले बाळे, उच्च शिक्षण, विवाह स्थळ, शेयर मार्केट,सट्टा बाजार, यश, अंगात असलेल्या कला, विविध गोष्टींचे उत्पादन, पाठीचा कणा या गोष्टी पाहतात
*६) सहावे स्थान -रिपू स्थान :-*
या स्थानावरून आपले शत्रू , आजार, रोग, पोट, मामा, पाळीव प्राणी, कोर्टकेस इत्यादी गोष्टी पाहतात
*७) सातवे स्थान –विवाह स्थान :-*
हे जोडीदाराचे स्थान आहे. जोडीदाराचे रंग रूप, स्वभाव, इत्यादी, शिवाय व्यवसायातील पार्टनर पण यावरूनच बघतात.
*८) आठवे स्थान -मृत्युस्थान :-*
यावरून मृत्युच्या वेळची परिस्थिती, गुप्तधन, वारसा हक्काचे धन, गुप्त गोष्टी पहिल्या जातात.
*९) नववे स्थान – भाग्य स्थान/ पुर्व जन्म कर्म स्थान/ धर्मस्थान :-*
या वरून दूरचे प्रवास, यात्रा, धार्मिक गोष्टी, न्यायखाते, उपासना, नातू,पणतू (मुलाचे मुल), पाय या गोष्टी पाहतात.
*१०)दहावे स्थान -कर्मस्थान :-*
पिता, व्यापार, व्यवसाय, माणसाचा नोकरी धंदा, पदोन्नती, त्यातील यश, गुडघे या गोष्टी पाहतात .
*११) अकरावे स्थान -लाभ स्थान/धन संचय स्थान :-*
या स्थानावरून वेगवेगळे लाभ, मित्र परिवार, कान या गोष्टी पाहतात, आपल्या सर्वांच्या कुंडलीत हे स्थान नक्कीच प्रबळ असावे
*१२) बारावे स्थान -व्यय स्थान :-*
या वरून परदेशी जाणे, हॉस्पिटल, जेल, गुंतवणूक, खर्च होणे या गोष्टी पाहतात तसेच मोक्षा करिताही नवम व द्वादश या स्थानांचा एकत्रित विचार करतात
आंतरजालावरुन 🙏🌹
[29/12/2017, 10:38 AM] +91 94228 06617: *शुक्रग्रह*
||#शुक्रग्रह|| शुक्र प्रेम वासना, आकर्षण शक्ति सुंदरता आदि का कारक ग्रह है,यह शुभ ग्रह है।शुक्र जातक की जीवनी शक्ति का कारक है।इसके बली और शुभ होने से जातक प्रसन्न रहने वाला और प्रेम भावना से पूर्ण होता है।शुक्र पुरुष की कुंडली में पत्नी, प्रेमिका, दाम्पत्य जीवन, वीर्य, पुरुषार्थ, कामवासना का कारक है।इसके आलावा यह खूबसूरत वस्तुओ, अच्छे कपडे, भोगविलास,सांसारिक उपयोगो का प्रमुख कारक है।यह व्यवसाय में होटल व्यवसाय, कॉस्मेटिक, सुंदरता से सम्बन्धीय व्यवसाय का कारक है।जिन जातको का शुक्र बली होकर लग्न, पंचम भाव, पंचमेश से सम्बन्ध रखता है ऐसे जातको की ओर विपरीत लिंग के व्यक्ति बहुत जल्द आकर्षित हो जाते है।5वे भाव , भावेश से किसी पुरुष जातक की कुंडली में बलीशुक्र का सम्बन्ध होने से जातक विपरीत लिंगी के प्रेम के लिए उतावला रहता है ऐसे जातक के प्रेम प्रसंग होते भी है।पाचवे भाव, भावेश ,शुक्र पर यदि पाप ग्रहो शनि राहु में से किन्ही दो या तीनो ग्रहो का प्रभाव होने से प्रेम प्रसंग में दुःख मिलता है शनि राहु केतू ग्रह प्रेमी या प्रेमिका से जातक या जातिका को लड़ाई झगड़ा कराकर या उनके बीच गलत फेमिया कराकर या किसी अन्य तरह से अलग कर देते है।यदि ऐसी स्थिति में बली गुरु का प्रभाव् शुक्र और पंचमेश पंचम भाव पर होता है तब अलगाव नही होता।इसी तरह की स्थिति यदि सप्तम भाव भावेश, और शुक्र से बनती है तब पत्नी से अलगाव होता है।स्त्री की कुंडली में सप्तम भाव, भावेश और गुरु पर शनि राहु केतु का प्रभाव, सप्तम भाव सप्तमेश पर गुरु की खुद की और अन्य शुभ ग्रहो बली शुक्र पूर्ण बली चंद्र और शुभ बुध का प्रभाव न होने से पति से अलगाव होता है। शुक्र प्रधान जातको के बाल अधिकतर घुंघराले होते है।शुक्र जातक को रोमांटिक ज्यादा बनाता है।शुक्र केंद्र या त्रिकोण का स्वामी होकर कुंडली के केंद्र 1,4,7,10 या 5, 9 त्रिकोण भाव में होने पर व 6 व् 12वे भाव में बैठने पर बली शुक्र जातक को पूर्ण तरह से अपने फल देता है।यदि पीड़ित होगा तब फल में कमी और अशुभ फल भी करेगा।जिन जातको को शुक्र के अशुभ फल मिल रहे है या शुक्र के शुभ फलो में कमी आ रही है वह जातक शुक्र के मन्त्र "ॐ शुं शुक्राय नमः" का जप करे, शुक्र यदि कुंडली में योगकारक है किसी शुभ भाव का स्वामी है तब शुक्र का रत्न ओपल पहनना शुभ रहेगा।मेष, कर्क, सिंह, वृश्चिक, धनु और मीन लग्न के जातको को बिना कुंडली दिखाए शुक्र का रत्न नही पहनना चाहिए क्योंकि इन लग्न की कुंडलियो में शुक्र की स्थिति मारक, और नैसर्गिक रूप से योगकारक या बहुत अनुकूल नही होती जिस कारण शुक्र का रत्न बिना कुंडली दिखाए नही पहनना चाहिए।एक बात ओर भी कभी भी नीच राशि के ग्रह का रत्न नही पहनना चाहिए।इसके आलावा शुक्र के लिये लक्ष्मी पूजन, खुशबूदार वस्तुओ का उपयोग करे, अच्छे और साफ कपडे पहने, शुक्र यंत्र को सफ़ेद चन्दन से भोजपत्र पर बनाकर शुक्रवार के दिन अभिमंत्रित करके सफ़ेद धागे में बांधकर अपने गले या हाथ की बाजु पर बंधना चाहिए।गाय की सेवा करने से शुक्र के शुभ फल में वृद्धि होती है
*संकलन जोतिषरत्न पं देवव्रत बूट*
*ग्रहदृष्टी सूर्य सिध्दांतीय पंचांग नागपूर*
[08/01, 9:47 AM] +91 94228 06617: *कुंडली से जाने वैधव्य योग:-*
1. सप्तम भाव व अष्टम भाव का स्वामी दोनों पापी ग्रहों के साथ 6 या 12 वे स्थान में एक साथ बैठे हो तो ऐसी स्त्री विधवा हो जाती है |
2. सप्तम भाव में केतु बैठा हो तथा राहु सूर्य व शनि के साथ मंगल आठवें या 12वें भाव में बैठा हो तो ऐसी स्त्री विधवा हो जाती हैं |
2. लग्न एवं सप्तम भाव में पापी ग्रहों तथा तीन ग्रहों पर शुभ ग्रह की दृष्टि या युक्ति ना हो तो ऐसी स्त्री 7 से 10 वर्ष के भीतर विधवा हो जाती है|
3. सप्तम स्थान में मेष या वृश्चिक राशि हो दो पापी ग्रहों के साथ राहु हो सप्तम स्थान में बैठा हो तो निश्चित रुप से विधवा योग बन जाता है |
4. चंद्र लग्न पाप कर्तरी योग में हो तथा चंद्र लग्न से सप्तम अष्टम स्थान में पापी ग्रह बैठे हो तो ऐसी स्त्री जल्द ही विधवा बन जाती है|
5. चंद्रमा के साथ राहु शुक्र के साथ मंगल तथा अष्टम स्थान में पापी ग्रह होने पर स्त्री की कुंडली में विधवा योग बनता है |
6. सप्तम स्थान में बुध व शनि हो तो ऐसी स्त्री विधवा भी हो जाती है और साथ ही व्यभिचार भी करती है |
7. यदि लग्न में शनि बैठा हो उससे अष्टम या बारहवें स्थान में राहु केतु सूर्य के साथ मंगल बैठा हो तो ऐसी स्त्री विधवा हो जाती है |
8. यदि दो या तीन पापी ग्रहों के साथ मंगल सप्तम या अष्टम स्थान में बैठा हो तो ऐसी स्त्री विवाह के बाद शीघ्र ही विधवा हो जाती है |
9. सप्तम स्थान में वेश्या वृश्चिक राशि मे राहु हो तथा मंगल छठे आठवें या 12वें स्थान में बैठा हो तो ऐसी स्त्री निश्चित रुप से विधवा हो जाती है |
10. सप्तमेश अष्टम स्थान में हो और अष्टमेश सप्तम स्थान में हो और पापी ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो तो ऐसी स्त्री निश्चित रूप से विधवा हो जाती है |
11. यदि बुध सप्तम भाव का स्वामी होकर पापी ग्रहों के साथ नीच या शत्रु राशि में यह अस्त होकर अष्टम स्थान में बैठा हो तथा उसे पापी ग्रह देखते हो तो ऐसी स्त्री अपने पति की हत्या कर के परिवार का नाश कर देती है |
12. मंगल मिथुन या कन्या लग्न का सप्तम स्थान में हो सूर्य, शनि, राहु, केतु ,इन ग्रहों की दृष्टि मंगल के ऊपर हो तो ऐसी स्त्री कम उम्र में ही विधवा हो जाती है
*संकलन जोतिषरत्न पं देवव्रत बूट*
*ग्रहदृष्टी सूर्य सिध्दांतीय पंचांग नागपूर*
[10/01, 9:50 AM] +91 94228 06617: *संतान योग*
सन्तान प्राप्ति हमारे पूर्व जन्मोपार्जित कर्मों पर आधारित है। अत: हमें नि:सन्तान दम्पत्ति की कुण्डली का अध्ययन करते वक्त किसी एक की कुण्डली का अध्ययन करने की बजाये पति-पित्न दोंनो की कुण्डली का गहन अध्ययन करने के बाद ही निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिये। अगर पंचमेश खराब है या पितृदोष, नागदोष व नाड़ीदोष है तब उनका उपाय मन्त्र, यज्ञ, अनुष्ठान तथा दान-पुण्य से करना चाहिये। प्रस्तुत लेख में सन्तान प्राप्ति में होने वाली रूकावट के कारण व निवारण पर प्रकाश डाला गया है। सन्तान प्राप्ति योग के लिये जन्मकुण्डली का प्रथम स्थान व पंचमेश महत्वपूर्ण होता है। अगर पंचमेश बलवान हो व उसकी लग्न पर दृष्टि हो या लग्नेश के साथ युति हो तो निश्चित तौर पर दाम्पत्ति को सन्तान सुख प्राप्त होगा।
यदि सन्तान के कारक गुरू ग्रह पंचम स्थान में उपनी स्वराशि धनु, मीन या उच्च राशि कर्क या नीच राशि मकर में हो तब कन्याओं का जन्म ज्यादा देखा गया है। पुत्र सन्तान हो भी जाती है तो बीमार रहती है अथवा पुत्र शोक होता है। यदि पंचम स्थान में मेष, सिंह, वृश्चिक या मीन राशि पर गुरू की दृष्टि या मंगल का प्रभाव होने पर पुत्र प्राप्ति होती है। यदि पंचम स्थान के दोनों ओर शुभ ग्रह हो व पंचम भाव तथा पंचमेश पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो पुत्र के होने की संभावना ज्यादा होती है। पंचमेश के बलवान होने पर पुत्र लाभ होता है। परन्तु पंचमेश अष्टम या षष्ठ भाव में नहीं होना चाहियें। बलवान पंचम, सप्तम या लग्न में स्थित होने पर उत्तम सन्तान सुख प्राप्त होता है।
बलवान गुरू व सूर्य भी पुत्र सन्तान योग का निर्माण करते हैं। पंचमेश के बलवान हाने पर, शुभ ग्रहों के द्वारा दृष्ट होने पर, शुभ ग्रहों से युत हाने पर पुत्र सन्तान योग बनता है। पंचम स्थान पर चन्द्र ग्रह हो व शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तब भी पुत्र सन्तान योग होता है। पुरूष जातक की कुण्डली में सूर्य व शुक्र बलवान हाने पर वह सन्तान उत्पन्न करने के अधिक योग्य होता है। मंगल व चन्द्रमा के बलवान हाने पर स्त्री जातक सन्तान उत्पन्न करने के योग्य होती है।
सन्तान न होने के योग –
पंचम स्थान या पंचमेश के साथ राहू होने पर सर्पशाप होता है। ऐसे में जातक को पुत्र नहीं होता है अथवा पुत्र नाश होता है।
शुभ ग्रहों की दृष्टि हाने पर पुत्र प्राप्ति हो सकती है।
यदि लग्न व त्रिकोण स्थान में शनि हो और शुभ ग्रहो द्वारा दृष्ट न हो तो पितृशाप से पुत्र प्राप्ति में कठिनाई होती है।
पंचमेश मंगल से दृष्ट हो या पंचम भाव में कर्क राशि का मंगल हो तब पुत्र प्राप्ति में कठिनाई होती है तथा शत्रु के प्रभाव से पुत्र नाश भी होता है।
पंचमेश व पंचम स्थान पर क्रूर ग्रहों की दृष्टि हो तब देवशाप द्वारा पुत्र नाश होता है।
चतुर्थ स्थान में पाप ग्रह हो पंचमेश के साथ शनि हो एवं व्यय स्थान में पाप ग्रह हो तो मातृदोष कें कारण सन्तान प्राप्ति में कठिनाई होती है।
भाग्य भाव में पाप ग्रह हो व पंचमेश के साथ शनि हो तब पितृदोष से सन्तान होने में कठनाई होती है।
गुरू पंचमेश व लग्नेश निर्बल हो तथा सूर्य, चन्द्रमा व नावमांश निर्बल हो तब देवशाप के प्रभाव से सन्तान हानि होती है।
गुरू, शुक्र पाप युक्त हों तो ब्राह्मणशाप व सूर्य, चन्द्र के खराब या नीच के होने पर पितृशाप के कारण सन्तान प्राप्ति में कठिनाई होती है।
यदि लग्नेश, पंचमेश व गुरू निर्बल हों या 6वें,8वें,12वें स्थान में हो तों भी सन्तान प्राप्ति में कठिनाई होती है। पाप ग्रह चतुर्थ स्थान में हो तो भी सन्तान प्राप्ति की राह में कठिनाई होती है।
नवम भाव में पाप ग्रह हो तथा सूर्य से युक्त हो तब पिता (जिसकी कुण्डली में यह योग हो उसके पिता) के जीवन काल में पोता देखना नसीब नहीं होता है।
*संकलन जोतिषरत्न पं देवव्रत बूट*
*ग्रहदृष्टी सूर्य सिध्दांतीय पंचांग नागपूर*
[25/01, 2:57 PM] +91 94228 06617: *तलाक – ज्योतिषीय कारण*
वर्तमान समय में जब स्त्री-पुरुष कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रहे हों वहाँ अब तलाक शब्द ज्यादा सुनाई देने लगा है. इसका एक कारण सहनशीलता का अभाव भी है. इस भाग-दौड़ भरी जिन्दगी में सभी मशीन बन गये हैं. काम की अधिकता ने सहनशक्ति में भी कमी कर दी है. लड़कियाँ अपने पैरों पर खड़े होने लगी है और उन्हें भी लगता है कि वह आजीविका में बराबर की हिस्सेदार है तो वह अपने साथी के सामने क्यूँ झुके! हालांकि यह एक तरह से अहंकार है और कुछ नहीं. बहुत बार पुरुष की मनमानी से तंग होकर घर में क्लेश बढ़ जाते हैं. बहुत से कारण बन जाते हैं तलाक के, जिन्हें अलग रहना हो वह कोई ना कोई बहाना ढूंढ ही लेते हैं. तलाक के कारणों का आज हम ज्योतिषीय आधार पर विश्लेषण करने का प्रयास करते हैं. कुंडली में ऎसे कौन से योग हैं जिनके आधार व्यक्ति का तलाक हो जाता है या किन्हीं कारणो से पति-पत्नी एक-दूसरे से अलग रहना आरंभ कर देते हैं. जन्म कुंडली में लग्नेश व चंद्रमा से सप्तम भाव के स्वामी ग्रह शुक्र ग्रह की स्थिति से प्रतिकूल स्थिति में स्थित हों. कुंडली में चतुर्थ भाव का स्वामी छठे भाव में स्थित हो या छठे भाव का स्वामी चतुर्थ भाव में हो तब यह अदालती तलाक दर्शाता है अर्थात पति-पत्नी का तलाक कोर्ट केस के माध्यम से होगा. बारहवें भाव के स्वामी की चतुर्थ भाव के स्वामी से युति हो रही हो और चतुर्थेश कुंडली के छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित हो तब पति-पत्नी का अलगाव हो जाता है. अलगाव देने वाले ग्रह शनि, सूर्य तथा राहु का सातवें भाव, सप्तमेश और शुक्र पर प्रभाव पड़ रहा हो या सातवें व आठवें भावों पर एक साथ प्रभाव पड़ रहा हो. जन्म कुंडली में सप्तमेश की युति द्वादशेश के साथ सातवें भाव या बारहवें भाव में हो रही हो. सप्तमेश व द्वादशेश का आपस में राशि परिवर्तन हो रहा हो और इनमें से किसी की भी राहु के साथ हो रही हो. सप्तमेश व द्वादशेश जन्म कुंडली के दशम भाव में राहु/केतु के साथ स्थित हों. जन्म लग्न में मंगल या शनि की राशि हो और उसमें शुक्र लग्न में ही स्थित हो, सातवें भाव में सूर्य, शनि या राहु स्थित हो तब भी अलगाव की संभावना बनती है. जन्म कुंडली में शनि या शुक्र के साथ राहु लग्न में स्थित हो. जन्म कुंडली में सूर्य, राहु, शनि व द्वादशेश चतुर्थ भाव में स्थित हो. जन्म कुंडली में शुक्र आर्द्रा, मूल, कृत्तिका या ज्येष्ठा नक्षत्र में स्थित हो तब भी दांपत्य जीवन में अलगाव के योग बनते हैं. कुंडली के लग्न या सातवें भाव में राहु व शनि स्थित हो और चतुर्थ भाव अत्यधिक पीड़ित हो या अशुभ प्रभाव में हो तब तब भी अलग होने के योग बनते हैं. शुक्र से छठे, आठवें या बारहवें भाव में पापी ग्रह स्थित हों और कुंडली का चतुर्थ भाव पीड़ित अवस्था में हो. षष्ठेश एक अलगाववादी ग्रह हो और वह दूसरे, चतुर्थ, सप्तम व बारहवें भाव में स्थित हो तब भी अलगाव होने की संभावना बनती है. जन्म कुंडली में लग्नेश व सप्तमेश षडाष्टक अथवा द्विद्वार्दश स्थितियों में हों तब पति-पत्नी के अलग होने की संभावना बनती है.
*संकलन जोतिषरत्न पं देवव्रत बूट*
*ग्रहदृष्टी सूर्य सिध्दांतीय पंचांग नागपूर*
[28/01, 10:09 AM] +91 94228 06617: *तीन ग्रहों की युति*
जब दो या दो से अधिक ग्रह एक ही राशि में हों तो इसे ग्रहों की युति कहा जाता है। जब दो ग्रह एक-दूसरे से सातवें स्थान पर हों अर्थात् 180 डिग्री पर हों, तो यह प्रतियुति कहलाती है। अशुभ ग्रह या अशुभ स्थानों के स्वामियों की युति-प्रतियुति अशुभ फलदायक होती है, जबकि शुभ ग्रहों की युति शुभ फल देती है।
ग्रहो से विचारणीय तथ्य :-
सूर्य (आत्म-तेज,आदर, पिता) : आदर के विचार,स्वाभिमान का विचार ।
चन्द्रमा ( मन, जल, माता, गति ) : भवन, भूमि, मातृभूमि को दर्शाता है ।
मंगल (साहस,धैर्य,तेज,क्षणिक क्रोध) : विचारों में ओज,क्रांतिकारी विचार ।
बुध (वाणी,चातुर्य.हास्य) : हास्य-व्यंग्य पूर्ण विचार,नए विचार ।
गुरु (ज्ञान,गंभीरता,न्याय,सत्य) : न्याय,सत्य और ज्ञान की कसौटी पर कसे हुए गंभीर विचार ।
शुक्र (स्त्री,माया,संसाधन,मिठास,सौंदर्य) : माया में जकड़े विचार,सुंदरता से जुड़े विचार ।
शनि (दु:ख,विषाद,कमी,निराशा) : मन में दु:ख,नकारात्मक सोच ।
राहू (मतिभ्रम,लालच) : विचारों का द्वंद्व,सही-गलत के बीच झूलते विचार ।
केतु (कटाक्ष,झूठ,अफवाह) : झूठ,अफवाह और सही बातों को काटने का विचार ।
तीन ग्रहों की युति के फल
सूर्य+चन्द्र+बुध = माता-पिता के लिये अशुभ। मनोवैज्ञानिक। सरकारी अधिकारी। ब्लैक मेलर । अशांत। मानसिक तनाव। परिवर्तनशील।
सूर्य+चन्द्र +केतू = रोज़गार के लिये परेशान। न दिन को चैन न रात को चैन। बुद्धि काम ना दे, चाहे लखपति भी हो जाये। शक्तिहीन।
सूर्य+शुक्र+शनि = पति/पत्नी में विछोह। तलाक हो। घर में अशांति। सरकारी नौकरी में गड-बड़।
सूर्य+बुध+राहू = सरकारी नौकरी। अधिकारी। नौकरी में गड-बड़। दो विवाह का योग। संतान के लिये हल्का। जीवन में अन्धकार।
चन्द्र+शुक्र+बुध = सरकारी अधिकारी। कर्मचारी। घरेलू अशांति। बहू –सास का झगड़ा। व्यापार के लिये बुरा। लड़कियाँ अधिक। संतान में विघ्न।
चन्द्र +मंगल+बुध = मन, साहस , बुद्धि का सामंजस्य। स्वास्थ अच्छा। नीतिवान साहसी ,सोच-विचार से काम करे। पाप दृष्टी में होतो, डरपोक /. दुर्घटना /ख्याली पुलाव पकाए।
चन्द्र+मंगल+शनि = नज़र कमजोर। बीमारी का भय। डॉक्टर , वै ज्ञानिक , इंजीनियर, मानसिक तनाव। ब्लड प्रेशर कम या अधिक।
चन्द्र+मंगल+राहू = पिता के लिए अशुभ। चंचलता। माता तथा भाई के लिए हल्का।
चन्द्र+बुध +शनि= तंतु प्रणाली में रोग। बेहोश हो जाना। बुद्धि की खराबी से अनेक दुःख हो। अशांत, मानसिक तनाव। बहमी।
चन्द्र +बुध+राहू = माँ के लिए अशुभ। सुख हल्का। पिता पर भारी। दुर्घटना की आशंका। तीन ग्रहों की युति के फल :-
चन्द्र+शनि+राहू = माता का सुख कम। दिमागी परेशानियाँ। ब्लड प्रेशर। दुर्घटना का भय। स्वास्थ हल्का।
शुक्र+बुध+शनि = चोरियां हो। धन हानी। प्रॉपर्टी डीलर। जायदाद वाला। पत्नी घर की मुखिया।
मंगल+बुध+शनि = आँखों में विकार। तंतु प्रणाली में विकार। रक्त में विकार। मामों के लिये अशुभ। दुर्घटना का भय।
मंगल+बुध+गुरू = अपने कुल का राजा हो। विद्वान। शायर। गाने का शौक। ओरत अच्छी मिले।
मंगल+बुध +शुक्र = धनवान हो। चंचल स्वभाव। हमेशा खुश रहे। क्रूर हो।
मंगल+बुध+राहू = बुरा हो। कंजूस। लालची। रोगी। फ़कीर। बुरा काम करे।
मंगल+बुध+केतू = बहुत अशुभ। रोगी हो। कंजूस हो। दरिद्र। गंदा रहे। व्यर्थ के काम करे।
गुरू+सूर्य+बुध = पिता के लिए अशुभ। विद्या विभाग में नौकरी।
गुरू+चन्द्र+शुक्र = दो विवाह। रोग। बदनाम प्रेमी। कभी धनी , कभी गरीब।
गुरू+चन्द्र+मंगल = हर प्रकार से उत्तम। धनी। उच्च पद। अधिकारी। गृहस्थ सुख।
गुरू+चन्द्र+बुध = धनी। अध्यापक। दलाल। पिता के लिये अशुभ। माता बीमार रहे।
गुरू+शुक्र+मंगल = संतान की और से परेशानी। प्रेम संबंधों से दुःख। गृहस्थ में असुख।
गुरू+शुक्र+बुध = कुटुंब अथवा गृहस्थ सुख बुरा। पिता के लिये अशुभ। व्यापारी।
गुरू+शुक्र+शनि = फसादी। पिता-पुत्र में तकरार।
गुरू+मंगल+बुध = संतान कमजोर। बैंक एजेंट। धनी। वकील।
चन्द्र+शुक्र+बुध+शनि = माँ- पत्नी में अंतर ना समझे।
चन्द्र+शुक्र+बुध+सूर्य = आज्ञाकारी। अच्छे काम करे। माँ -बाप के लिये शुभ। भला आदमी। सरकारी नौकरी विलम्ब से मिले।
*संकलन जोतिषरत्न पं देवव्रत बूट*
*ग्रहदृष्टी सूर्य सिध्दांतीय पंचांग नागपूर*
[29/01, 10:11 AM] +91 94228 06617: *त्रीग्रह योग*
कुंडली (Kundali) में किसी राशि पर ग्रहों का प्रभाव घर में उपस्थित एक ग्रह और अन्य ग्रहों की युति पर निर्भर करता है। कुंडली (Janam Kundali) में दो से अधिक ग्रहों की उपस्थिति में भी समान प्रभाव ही पड़ता है। आइए जानते हैं कि कुंडली (Kundali) के एक घर में तीन ग्रहों की युति का जातक पर क्या प्रभाव पड़ता है-:
सूर्य-चंद्रमा-मंगल
ये जातक साहसी होते हैं एवं इनमें एक योद्धा के संपूर्ण गुण होते हैं। यह अपने कार्य में निपुण होते हैं। धैर्यवान प्रवृत्ति के ये जातक वैज्ञानिक बन सकते हैं।
सूर्य-चंद्रमा-बुध
कुंडली (Kundali) में इस युति के अंर्तगत पैदा होने वाले जातक बुद्धिमान होते हैं और इन्हें पढ़ना पसंद होता है। लेडी लक का इन्हें हमेशा ही फायदा होता है। ये नीतियां बनाने में निपुण होते हैं।
सूर्य-चंद्रमा-बृहस्पति
ये जातक फिलॉस्फर होते हैं। यह ज्ञानी और मैत्रीपूर्ण होते हैं। मेहनती, धार्मिक प्रवृति के इन जातकों को योग पसंद आता है।
सूर्य-चंद्रमा-शुक्र
कुंडली (Kundali) में इस युति के अंतर्गत आने वाला जातक लालची व्यापारी होता है लेकिन साथ ही वह अधिक धन कमाने में असफल रहता है। इनकी प्रजनन क्षमता कम होती है।
सूर्य-चंद्रमा-शनि
ये जातक किसी के भी विश्वास योग्य नहीं होते एवं यह आत्मनिर्भर होते हैं। इनमें बिलकुल भी धैर्य नहीं होता तथा ये धोखेबाज होते हैं।
सूर्य-बुध-मंगल
साहस के साथ-साथ इन जातकों में अहं भी कूट कूट कर भरा होता है। धैर्यहीन ये जातक बातूनी होते हैं। इन्हें अपने जीवन में आई सुख्-समृद्धि का आनंद उठाने का अवसर नहीं मिलता।
सूर्य-बुध-बृहस्पति
कुंडली (Kundali) में ग्रहों की इस युति के अंतर्गत प्रभावी व्यक्तित्व के जातक आते हैं। ये अपने जीवन में अत्यधिक प्रसिद्धि और सम्मान पाते हैं। यह विश्वसनीय तथा धनी होते हैं।
सूर्य-बुध-शुक्र
ये जातक स्वार्थी एवं रूखे व्यवहार के होते हैं। संपन्न परिवार में पैदा हुए ये जातक अपने कार्यक्षेत्र में निपुण और शक्तिशाली बनते हैं। यह नेत्र संबंधी विकार और अन्य रोगों से ग्रस्त रहते हैं।
सूर्य-बुध-शनि
कुंडली (Kundali) में इस युति में पैदा होने वाले जातकों को असफलताओं का सामना करना पड़ता है जिसके कारण ये अकसर दुखी और उदास रहते हैं।
सूर्य-मंगल-बृहस्पति
ये जातक लेखक, मूर्तिकार, वक्ता और कलाकार बनते हैं। अपनी चतुरता के कारण यह सुख-समृद्धि से अपना जीवन यापन करते हैं। यह नेत्र संबंधी विकारों से ग्रस्त रहते हैं।
सूर्य-मंगल-शुक्र
व्यवहार से बातूनी ये जातक व्यर्थ की बातों में अपना समय व्यतीत करते हैं। दूसरों से ईष्या रखने वाले इन जातकों में नैतिकता की कमी होती है।
सूर्य-मंगल-शनि
ये जातक रूपवान होते हैं लेकिन उम्र बढ़ने के साथ-साथ इनका आकर्षण घटता रहता है। यह पैसों की बर्बादी करते हैं और इनमें नैतिकता की कमी होती है।
सूर्य-बृहस्पति-शुक्र
ये जातक परिश्रमी और सम्माननीय होते हैं। यह अच्छे आयोजक बनते हैं। यह नेत्र संबंधी विकारों से ग्रस्त रहते हैं।
सूर्य-बृहस्पति-शनि
इन जातकों का चरित्र अच्छा नहीं होता एवं यह अपने जीवन में कई शत्रु बनाते हैं। इन्हें कुष्ठ रोग का खतरा रहता है।
सूर्य-शुक्र-शनि
ये जातक किसी पीड़ादायक बीमारी से ग्रस्त होते हैं तथा इनका चरित्र अच्छा नहीं होता। अपने कार्यों के कारण इन्हें मानहानि भी झेलनी पड़ सकती है।
चंद्रमा-बुध-मंगल
ये जातक बेरहम, दूसरों से अलग रहने वाले और धोखेबाज होते हैं।
चंद्रमा-मंगल-बृहस्पति
ये जातक आकर्षक व्यक्तित्व के होते हैं। यह चंचल और मजाकिया स्वभाव के होते हैं। अपनी मेहनत से ये जीवन में बहुत कुछ पाते हैं।
चंद्रमा-मंगल-शुक्र
इन जातकों की सेक्स में ज्यादा रूचि होती है। ये लालची और धोखेबाज होते हैं। इनमें अहं की अधिकता होती है एवं इनका चरित्र अच्छा नहीं होता।
चंद्रमा-मंगल-शनि
ये जातक अशांत किंतु विश्वसनीय होते हैं। यह ज्ञानी होते हैं जिस कारण इन्हें अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया जाता है।
चंद्रमा-बृहस्पति-शुक्र
इन जातकों में समर्पण और नेतृत्व जैसे गुण होते हैं। यह अच्छे स्वभाव के होते हैं एवं अपनी प्रखर पहचान के कारण इनके नेता बनने के योग भी हैं।
चंद्रमा-शुक्र-शनि
कुंडली (Kundali) में ग्रहों की इस युति के अंदर आने वाले जातक दानी होते हैं। यह परिश्रमी होते हैं। यह एक अच्छे ज्योतिषी, शिक्षक, संपादक और व्यापारी बनते हैं।
बुध-मंगल-बृहस्पति
इन जातकों को उत्तम जीवनसाथी की प्राप्ति होती है एवं महिला मित्रों के बीच ये काफी लोकप्रिय होते हैं। यह महत्वाकांक्षी होते हैं। इनमें अच्छे कवि और गायक बनने के गुण होते हैं।
बुध-मंगल-शुक्र
ये जातक विकलांग एवं निम्न नस्ल के होते हैं लेकिन ये अपने जीवन में कई अच्छे कार्य करते हैं। ये बातों को उलझाने वाले होते हैं।
मंगल-बुध-शनि
यह जातक लापरवाह और गैर जिम्मेदार होते हैं। इन्हें मुंह का कोई रोग रहता है।
मंगल-बृहस्पति-शुक्र
ये जातक धनी,स्वस्थ और सुखी जीवन व्यतीत करते हैं। यह संपन्न वर्ग के दोस्त बनाते हैं।
मंगल-बृहस्पति-शनि
ये जातक अपने जीवन के आखिरी पहर में सफलता की सीढ़ी चढ़ते हैं। ये धनी होते हैं।
मंगल-शुक्र-शनि
कुंडली (Kundali) में इस युति के अंदर जन्म लेने वाले जातक अनेक संस्थानों का निर्माण करते हैं एवं किसी ऊंचे पद पर अधिकारी होते हैं। यह सहायक होते हैं।
*संकलन जोतिषरत्न पं देवव्रत बूट*
*ग्रहदृष्टी सूर्य सिध्दांतीय पंचांग नागपूर*